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आउशावित्ज एक प्रेम कथा

 आउशवित्ज़ एक प्रेम कथा” पढ़कर मैं कह सकती हूँ कि साहित्य के माध्यम से हिंदी भाषा और हिंदी समाज को विश्व घटनाओं से सीधे जोड़ने की क्षमता  लेखिका को है। उपन्यास की कहानी को भारत से निकालकर पोलैंड ले जाने का विश्वसनीय माध्यम उपन्यास की नायिका डॉ. प्रतीति सेन का सेमिनार बनता है। तो कुछ अतिरिक्त तरीके हैं जो इस कार्य-करण संबंध को प्रमाणित करते हैं। नायिका डॉ. प्रतीति सेन सबीना से भारत में एक सेमिनार में मिलती है, फिर सबीना पोलैंड वापस जाती है। प्रतीति सेन ने सबीना की दोस्ती और उसकी अँधेरी-अधूरी दुनिया को समझा और जानना चाहा। क्योंकि सेन और सबीना की प्रतीति काफी 'कॉमन' है. इधर प्रतीति सेन का टूटा हुआ प्रेम संबंध, उससे छुटकारा पाने की कोशिश, दुःख और हार। इसके लिए वे उस स्थान को कुछ दिन के लिए छोड़ दें। ताकि वे दुःख, पीड़ा, निराशा और अकेलापन की यादों से छुटकारा पा सकें। फिर उनके सुपरवाइजर शान्तनु पाल मित्रा का 'कॉन्फ़िलक्ट जोन' में काम करने में दिलचस्पी दिखाई दी। यही तरीके उपन्यास को तर्कसंगत और विश्वसनीय बनाते हैं। गरिमा जी की कालक्रमिकता इस प्रेम-कथा और इतिहास की युद्ध-कथा कह...

यादें उन लम्हों की - कविता संग्रह

 इस कहानी संग्रह में छोटी-छोटी कहानियाँ सम्मिलित हैं, जिन्हें एक ही बैठक में आराम से पढ़ा जा सकता है। इन सभी कहानियों का केंद्रीय विषय प्रेम है, जिसमें प्रेम के विभिन्न पहलुओं को चित्रित किया गया है। कुछ कहानियाँ समर्पण की भावना से प्रेरित हैं, तो कुछ में प्रेमिका या प्रेमी का इंतजार दिखाई देता है। हालांकि, हर कहानी का निष्कर्ष सुखद होता है, जो यह दर्शाता है कि प्रेम कभी अधूरा नहीं रहना चाहिए। इन कहानियों में प्रेम के उन पहलुओं को उजागर किया गया है जो हमारे जीवन में कभी न कभी महसूस होते हैं, और यह संग्रह एक तरह से उन अधूरे प्रेम अनुभवों को पूरा करने का कार्य करता है, जो थकान भरे दिन के बाद सुखद अंत का अहसास कराते हैं। इस संग्रह में एक विशेष कहानी “एक आखिरी मुलाकात” मुझे अत्यधिक प्रिय लगी। यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है, जो जीवन के अंतिम चरण में उस मोड़ पर लौटता है जहाँ उसने कभी किसी का हाथ छोड़ा था। वहां जाकर वह अपनी पुरानी यादों को ताजा करता है और अपने जीवन की एक कड़वी सच्चाई का सामना करता है। इस कहानी के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि हमारे जीवन में कभी-कभी हमें कुछ लोगों को पी...

और और औरत

 आज की नारी स्वतंत्रता की आकांक्षा रखती है, और समाज में अपनी पहचान स्थापित करना चाहती है। साठोत्तरी महिला साहित्यकारों में प्रमुख स्थान रखने वाली कृष्णा अग्निहोत्री ने अपने जीवन के संघर्षों को न केवल ईमानदारी से लिखा, बल्कि उसे समाज के सामने रखा। आत्मकथा के पहले खंड “लगता नहीं है दिल मेरा” में वे कहती हैं, “जीवन तो सभी जीते हैं, परंतु कुछ कहने-सुनने से ही समय की कहानियाँ बनती हैं। बहुत झेला, बहुत भोगा, बहुत सहा… नहीं सहन हुआ तो लिख डाला। लिखने का उद्देश्य किसी को दुख पहुँचाना या लांछित करना नहीं है।” कृष्णा अग्निहोत्री की आत्मकथा में उनके जीवन की सचाई उजागर होती है, जिसमें नारी के मनोविज्ञान और समाज में उसकी स्थिति को बखूबी दर्शाया गया है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि पुरुष प्रधान समाज में स्त्री के जीवन के अनेक पहलू दबे हुए हैं और वास्तविकता इससे कहीं अधिक कठोर है। वे उन पर कटाक्ष करती हैं जो एक स्त्री के आदर और प्रेम का दिखावा करते हैं, जबकि वास्तविकता कुछ और ही होती है। कृष्णा जी की आत्मकथा में एक विद्रोही स्वर गूंजता है। उनका बचपन माँ की दयालुता और पक्षपाती व्यवहार से प्रभावित था...