गोल्डन वीज़ा योजना

 भारत का मध्यमवर्ग आज तेजी से बदलते विचारों और प्राथमिकताओं के दौर से गुजर रहा है। पारंपरिक रूप से सुरक्षित जीवन और स्थायित्व को महत्व देने वाला यह वर्ग अब एक बेहतर भविष्य की तलाश में विदेशों की ओर रुख कर रहा है। हाल के वर्षों में दुबई की गोल्डन वीज़ा योजना इस प्रवृत्ति का प्रमुख आकर्षण बन गई है। यह योजना करीब ₹23 लाख के निवेश पर स्थायी निवास की सुविधा देती है, जिसमें आवेदक अपने पूरे परिवार को साथ ले जाने और उच्च स्तर की जीवन सुविधाओं का लाभ उठाने में सक्षम होता है।


इस बढ़ते रुझान के पीछे कई कारण हैं। सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक है दुबई की कर नीति। भारत में मध्यमवर्ग को अपनी आय का बड़ा हिस्सा आयकर और पूंजीगत लाभ कर के रूप में चुकाना पड़ता है, जबकि दुबई में व्यक्तिगत आयकर और पूंजीगत लाभ कर नहीं हैं। इससे वे लोग, जो भारत में उच्च कर दे रहे हैं, दुबई जैसे देशों में कर-मुक्त जीवन की ओर आकर्षित हो रहे हैं।


भारत में बुनियादी ढांचे की स्थिति और सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता भी चिंता का विषय है। देश के कई हिस्सों में सड़कों की दुर्दशा, सरकारी अस्पतालों की सीमित सेवाएं और शिक्षा संस्थानों की अव्यवस्था मध्यमवर्ग के भीतर असंतोष को जन्म दे रही है। वे लोग जो नियमित रूप से टैक्स अदा करते हैं, जब खुद को बुनियादी सुविधाओं के लिए भी संघर्ष करता पाते हैं, तो उनकी नजर विदेशों की ओर जाती है जहाँ उन्हें इन सेवाओं का उच्च स्तर पर और व्यवस्थित रूप से लाभ मिलता है।


इसके साथ ही भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। कॉर्पोरेट टैक्स में छूट दिए जाने के बावजूद व्यक्तिगत करदाताओं पर कर भार लगातार बढ़ रहा है। विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, भारत की आय असमानता अब दुनिया में सबसे अधिक है, जहाँ समाज के सबसे अमीर 10% लोग सबसे गरीब 10% की तुलना में कई गुना अधिक कमाई करते हैं। यह स्थिति मध्यमवर्ग को यह सोचने पर मजबूर कर रही है कि क्या वे वास्तव में अपने देश में आर्थिक रूप से सुरक्षित हैं।


दुबई का आकर्षण केवल कर लाभ तक सीमित नहीं है। वहां का आधुनिक बुनियादी ढांचा, स्वच्छ और सुरक्षित वातावरण, उच्च जीवन गुणवत्ता और सुव्यवस्थित प्रशासन भारतीयों को एक ऐसा विकल्प प्रदान करता है जहाँ वे अपने संसाधनों का बेहतर उपयोग कर सकते हैं। ये सभी कारक मिलकर दुबई को भारतीय मध्यमवर्ग के लिए एक आदर्श गंतव्य बनाते हैं।


अब प्रश्न यह उठता है कि क्या भारत सरकार इस बढ़ते हुए पलायन की प्रवृत्ति को गंभीरता से लेगी? क्या कर नीति में संतुलन, बुनियादी सुविधाओं में सुधार और जीवन की गुणवत्ता में बढ़ोतरी के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे? यदि नहीं, तो यह संभावना प्रबल होती जा रही है कि भारत का मध्यमवर्ग अपने और अपने परिवार के लिए बेहतर अवसरों की तलाश में विदेशों की ओर पलायन करता रहेगा।


इस पूरे परिदृश्य में यह स्पष्ट है कि मध्यमवर्ग केवल आर्थिक फायदे ही नहीं, बल्कि सुरक्षा, सम्मान और स्थिरता भी चाहता है। अगर देश इन मूलभूत अपेक्षाओं को पूरा करने में असफल रहता है, तो दुबई जैसे विकल्पों की चमक और अधिक तेज होती जाएगी।


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