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ए.आई. और रचनात्मकता: एक नया युग

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (ए.आई.) की तीव्र प्रगति मानव रचनात्मकता और रोजगार परिदृश्य को विशेष रूप से कला और मनोरंजन के क्षेत्र में मूल रूप से परिवर्तित कर रही है। स्टूडियो जिबली या डिज़्नी-पिक्सर जैसी शैलियों में जटिल कलाकृतियाँ बनाना, प्रसिद्ध गायकों की आवाज़ में गीतों की रचना करना या पूरी पटकथाएं तैयार करना—ए.आई. इन सभी कार्यों को कुछ ही क्षणों में पूरा करने की असाधारण क्षमता प्रदर्शित कर रहा है। यह परिवर्तन मौलिकता की अवधारणा और मानवीय कलात्मक प्रयासों के भविष्य को लेकर गहरे दार्शनिक प्रश्न उत्पन्न करता है। ए.आई. की रचनात्मक क्षमताएं उस दीर्घकालिक दार्शनिक बहस को फिर से प्रज्वलित करती हैं कि क्या वास्तव में कोई विचार पूर्णतः मौलिक होता है। कई विचारक मानते हैं कि मानव मस्तिष्क इस प्रकार ढला होता है कि वह पूर्व ज्ञान और अनुभवों के आधार पर नए विचारों की रचना करता है। “कोई भी विचार पूरी तरह नया नहीं होता” जैसी अवधारणाएं दर्शाती हैं कि नवाचार प्रायः पूर्ववर्ती तत्वों के संयोजन और पुनः संरचना से उत्पन्न होता है—बिलकुल एक मानसिक कैलिडोस्कोप की तरह। ए.आई. भी इसी सिद्धांत पर कार्य करता है। यह प...

गोल्डन वीज़ा योजना

  भारत का मध्यमवर्ग आज तेजी से बदलते विचारों और प्राथमिकताओं के दौर से गुजर रहा है। पारंपरिक रूप से सुरक्षित जीवन और स्थायित्व को महत्व देने वाला यह वर्ग अब एक बेहतर भविष्य की तलाश में विदेशों की ओर रुख कर रहा है। हाल के वर्षों में दुबई की गोल्डन वीज़ा योजना इस प्रवृत्ति का प्रमुख आकर्षण बन गई है। यह योजना करीब ₹23 लाख के निवेश पर स्थायी निवास की सुविधा देती है, जिसमें आवेदक अपने पूरे परिवार को साथ ले जाने और उच्च स्तर की जीवन सुविधाओं का लाभ उठाने में सक्षम होता है। इस बढ़ते रुझान के पीछे कई कारण हैं। सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक है दुबई की कर नीति। भारत में मध्यमवर्ग को अपनी आय का बड़ा हिस्सा आयकर और पूंजीगत लाभ कर के रूप में चुकाना पड़ता है, जबकि दुबई में व्यक्तिगत आयकर और पूंजीगत लाभ कर नहीं हैं। इससे वे लोग, जो भारत में उच्च कर दे रहे हैं, दुबई जैसे देशों में कर-मुक्त जीवन की ओर आकर्षित हो रहे हैं। भारत में बुनियादी ढांचे की स्थिति और सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता भी चिंता का विषय है। देश के कई हिस्सों में सड़कों की दुर्दशा, सरकारी अस्पतालों की सीमित सेवाएं और शिक्षा सं...

Five Point Someone -Chetan Bhagat

 चेतन भगत का उपन्यास Five Point Someone: What Not to Do at IIT (2004) भारतीय अंग्रेज़ी लोकप्रिय साहित्य के क्षेत्र में एक मील का पत्थर माना जाता है। यह कहानी तीन छात्रों—हरी, अलोक, और रयान—की है, जो IIT जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में पढ़ाई करते हुए शैक्षणिक और सामाजिक दबावों से जूझते हैं। उपन्यास पारंपरिक सफलता की परिभाषा को चुनौती देता है और अकादमिक दबाव, व्यक्तित्व, रचनात्मकता, और मित्रता जैसे विषयों पर केंद्रित है। यद्यपि इसे साहित्यिक उत्कृष्टता के लिए नहीं सराहा गया, लेकिन इसने भारतीय युवाओं को अंग्रेज़ी उपन्यासों से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई (Trivedi 45)। उपन्यास पहले व्यक्ति में लिखा गया है, जहां हरी खुद कहानी सुनाता है। भाषा सरल, संवादात्मक और सहज रूप से समझने योग्य है, जो इसे विशेष रूप से उन पाठकों के लिए सुलभ बनाती है जो अंग्रेज़ी में नए हैं। आलोचकों के अनुसार, भगत की शैली साहित्यिक गहराई से रहित है। Mehta लिखते हैं कि भगत एक जानबूझकर साधारण शैली अपनाते हैं, जो साहित्यिक अलंकारों की बजाय पठनीयता पर जोर देती है (Mehta 63)। यह शैली साहित्यिक दृष्टि से सीमित हो सकती है, लेकिन...

आउशावित्ज एक प्रेम कथा

 आउशवित्ज़ एक प्रेम कथा” पढ़कर मैं कह सकती हूँ कि साहित्य के माध्यम से हिंदी भाषा और हिंदी समाज को विश्व घटनाओं से सीधे जोड़ने की क्षमता  लेखिका को है। उपन्यास की कहानी को भारत से निकालकर पोलैंड ले जाने का विश्वसनीय माध्यम उपन्यास की नायिका डॉ. प्रतीति सेन का सेमिनार बनता है। तो कुछ अतिरिक्त तरीके हैं जो इस कार्य-करण संबंध को प्रमाणित करते हैं। नायिका डॉ. प्रतीति सेन सबीना से भारत में एक सेमिनार में मिलती है, फिर सबीना पोलैंड वापस जाती है। प्रतीति सेन ने सबीना की दोस्ती और उसकी अँधेरी-अधूरी दुनिया को समझा और जानना चाहा। क्योंकि सेन और सबीना की प्रतीति काफी 'कॉमन' है. इधर प्रतीति सेन का टूटा हुआ प्रेम संबंध, उससे छुटकारा पाने की कोशिश, दुःख और हार। इसके लिए वे उस स्थान को कुछ दिन के लिए छोड़ दें। ताकि वे दुःख, पीड़ा, निराशा और अकेलापन की यादों से छुटकारा पा सकें। फिर उनके सुपरवाइजर शान्तनु पाल मित्रा का 'कॉन्फ़िलक्ट जोन' में काम करने में दिलचस्पी दिखाई दी। यही तरीके उपन्यास को तर्कसंगत और विश्वसनीय बनाते हैं। गरिमा जी की कालक्रमिकता इस प्रेम-कथा और इतिहास की युद्ध-कथा कह...

यादें उन लम्हों की - कविता संग्रह

 इस कहानी संग्रह में छोटी-छोटी कहानियाँ सम्मिलित हैं, जिन्हें एक ही बैठक में आराम से पढ़ा जा सकता है। इन सभी कहानियों का केंद्रीय विषय प्रेम है, जिसमें प्रेम के विभिन्न पहलुओं को चित्रित किया गया है। कुछ कहानियाँ समर्पण की भावना से प्रेरित हैं, तो कुछ में प्रेमिका या प्रेमी का इंतजार दिखाई देता है। हालांकि, हर कहानी का निष्कर्ष सुखद होता है, जो यह दर्शाता है कि प्रेम कभी अधूरा नहीं रहना चाहिए। इन कहानियों में प्रेम के उन पहलुओं को उजागर किया गया है जो हमारे जीवन में कभी न कभी महसूस होते हैं, और यह संग्रह एक तरह से उन अधूरे प्रेम अनुभवों को पूरा करने का कार्य करता है, जो थकान भरे दिन के बाद सुखद अंत का अहसास कराते हैं। इस संग्रह में एक विशेष कहानी “एक आखिरी मुलाकात” मुझे अत्यधिक प्रिय लगी। यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है, जो जीवन के अंतिम चरण में उस मोड़ पर लौटता है जहाँ उसने कभी किसी का हाथ छोड़ा था। वहां जाकर वह अपनी पुरानी यादों को ताजा करता है और अपने जीवन की एक कड़वी सच्चाई का सामना करता है। इस कहानी के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि हमारे जीवन में कभी-कभी हमें कुछ लोगों को पी...

और और औरत

 आज की नारी स्वतंत्रता की आकांक्षा रखती है, और समाज में अपनी पहचान स्थापित करना चाहती है। साठोत्तरी महिला साहित्यकारों में प्रमुख स्थान रखने वाली कृष्णा अग्निहोत्री ने अपने जीवन के संघर्षों को न केवल ईमानदारी से लिखा, बल्कि उसे समाज के सामने रखा। आत्मकथा के पहले खंड “लगता नहीं है दिल मेरा” में वे कहती हैं, “जीवन तो सभी जीते हैं, परंतु कुछ कहने-सुनने से ही समय की कहानियाँ बनती हैं। बहुत झेला, बहुत भोगा, बहुत सहा… नहीं सहन हुआ तो लिख डाला। लिखने का उद्देश्य किसी को दुख पहुँचाना या लांछित करना नहीं है।” कृष्णा अग्निहोत्री की आत्मकथा में उनके जीवन की सचाई उजागर होती है, जिसमें नारी के मनोविज्ञान और समाज में उसकी स्थिति को बखूबी दर्शाया गया है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि पुरुष प्रधान समाज में स्त्री के जीवन के अनेक पहलू दबे हुए हैं और वास्तविकता इससे कहीं अधिक कठोर है। वे उन पर कटाक्ष करती हैं जो एक स्त्री के आदर और प्रेम का दिखावा करते हैं, जबकि वास्तविकता कुछ और ही होती है। कृष्णा जी की आत्मकथा में एक विद्रोही स्वर गूंजता है। उनका बचपन माँ की दयालुता और पक्षपाती व्यवहार से प्रभावित था...

अयोध्या तथा अन्य कविताएँ - यतींद्र मिश्र

 इस कविता संग्रह से कवि यतींद्र  मिश्र   व्यापक ज़मीन पर अपने विचारों के साथ खड़े नज़र आते हैं। उसने अपने समय की आहटों को सफलतापूर्वक पेश की है। प्रस्तुत कविताएँ कवि के व्यक्तिगत समाज व पडोस के जीवन को गहरी अंतर्दृष्टि से विश्लेषित करती हैं । प्रस्तुत कविता संग्रह मुख्य रूप से चार खंडों में विभक्त है।  प्रस्तुत खंड कवि के सामाजिक सरोकार से ज़्यादा व्यक्तिगत उलझनों को रेखांकित करता है। प्रस्तुत व्यक्तिगत उलझनों से पाठक आसानी से तादात्म्य  हो जाते हैं ।  जहाँ कवि की  रिश्ता उसके समाज से होता हुआ घर, आँगन और लोक से गुजरता है तथा इतिहास, परम्परा और स्मृति से बार- बार सार्थक संवाद करता है। फिर चाहे वह "कविता का रंग' में मीर और मोमिन के बहाने पिता की आत्मीय चर्चा हो, 'कील' में समाज के सबसे निम्नतम व्यक्ति की पीड़ा का स्वर हो अथवा 'झील, पानी, पत्ता और आदमी' में सहमेल की सार्थकता को वाणी देती समाजोन्मुख वैचारिकता, सभी जगह कविता आश्वस्त करती है। 'कविता का रंग' नामक कविता में कवि कविता के रंग  की खोज करके अंत में इस  निष्कर्ष पर पहुँचे कि  कव...